बारिश and सरदार का छत्ता - What is Today's Blog

बारिश and सरदार का छत्ता

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सरदार का छत्ता

बारिश पड़ने लगी थी। दो सरदार भीगते हुए जा रहे थे। संतोख सिंह ने कहा - सरदारजी, बारिश चालू हो गई है। छाता खोल लो।

भाई, कोई फायदा नहीं होगा। इसमें छेद ही छेद हैं। तो इसे लेकर क्यों चले थे?

मुझे क्या पता था कि बारिश पड़ने लगेगी?



कैसा बुद्धू बनाया

बंताजी एक इमारत की दो सौंवीं मंजिल पर खड़े थे तभी एक आदमी आया और कहने लगा- बड़ा गजब हुआ, आपका बेटा मर गया!

बंताजी बोले-  क्या कहा? चलो-चलो जल्दी चलो।

नीचे आने पर वे जोर-जोर से हॉफने के साथ-साथ हँसने भी लगे। 

इस पर आदमी आश्चर्य से भर गया, उसने पूछा 'आपका बेटा मर गया और आप हँस रहे हैं?

बंताजी पेट पकड़ कर हँसते हुए बोले -  कैसा बुध्दू बनाया मैंने, दो सौ माले उतार दिए तुझे, मेरी तो अभी तक शादी ही नहीं हुई।


उपन्यास

एक उपन्यासकार ने अपनी विद्वता का रौब झाडते हुए अपने दोस्त संता सिंह से कहा- उपन्यास लिखना कोई आसान काम नहीं है। पता है, एक उपन्यास लिखने में कभी-कभी मुझे एक साल लग जाता है।

इस पर उपन्यासकार का दोस्त संता सिंह हंसते हुए बेफिक्री से बोला- तुम बेकार में इतनी मेहनत करते हो यार। पता है पंद्रह रूपये में तो लिखालिखाया उपन्यास मिल जाता है।